गुरुवार, 31 मार्च 2011

"जिंदा हू यारो"


देखो मै चलते चलते ठोकर खा गया,
उठा फिर चला मगर लगड़ा गया 
गम दुनिया को ये नहीं की मै लंगड़ाता  हूँ.
गम तो ये है की फिर भी मुस्कुराता हूँ
गम बस यही होता तो फिर बात ही क्या थी,
गम तो ये है की 
चलकर, गिरकर, उठकर, लंगड़ाकर  हौले से मुस्कुराकर 
और फिर दौड़ जाता हूँ 


"दुनिया के गम देखकर  शर्मिंदा हू यारो
आज निशा है कल "प्रभात" होगा, इसीलिए जिंदा हू यारो"

प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना "

बुधवार, 30 मार्च 2011

मै भी छीन लेता चाँद.....


मै भी छीन लेता चाँद , गर इतना आसान होता
सत्कार करता खूब, गर मेरा मेहमान होता
हर हद्द तोड़ देता,गर आम इंसान होता
मर ही  जाता ना, और क्या नुक्सान होता

जमीन पे होता तो किसी गैर की मुस्कान होता
महबूब के सजने का सामान होता
किसी आशिक की आजमाईश की शाम होता,
लाइलाज शराबी के होठो का जाम होता
तू नूर ए खुदा का दूजा नाम होता
किसी की गीता तो किसी का कुरान होता

मै भी छीन लेता गर इतना आसान होता
खुद खुदा ही  भेट कर देता तो क्या कम उसका एहसान होता
मै भी छीन लेता गर इतना आसान होता
मर ही जाता ना और क्या नुक्सान होता.................................

प्रभात कुमार भारद्वाज "परवाना "

सोमवार, 28 मार्च 2011

जब गिलास बोला......


मै एक गिलास हूँ
हर पथिक की प्यास हूँ
न मुसलमान हूँ  ना इसाई हूँ
न हिन्दू हूँ न कसाई हूँ
मै धर्म नहीं देखता, मै कर्म नहीं देखता
मै तो अपने कर्मो का घड़ा भरता हूँ,
और निस्वार्थ भाव से आपकी सेवा करता हूँ
वो मियाँ अभी अभी मस्जिद से आये है
कुछ पावन लब्ज कुरान के अधरों पर छाए है
वह जिन्दगी जी रहे है,
मजे से जल पी रहे है
उनके अधरों को छू कर मेरे वारे न्यारे 
वे गए पंडित काशीनाथ पधारे 
क्या पावन एहसास मिला  है
एक पंडित का साथ मिला है
सूखे गले को तरण कर रहे है
वे भी जल ग्रहण कर रहे है
दोनों को जल पिला दिया
दोनों अधरों को मिला दिया
पर क्या सच में मिले है
शायद कुछ बैर पले है
पर क्यों ?
जब एक राह पर चल सकते है,
एक समान पल सकते है
एक समान बोलते है 
एक समान सोचते है
एक से विचार है
एक सा आचार है
एक सा व्यवहार है
एक सा ही ज्ञान है
इससे भी बढ़कर दोनों इंसान है
मै निर्जीव हूँ, पर विचार से सजीव हूँ
जब मै हिन्दू  मुस्लिम में भेद नहीं करता,
समजल  देता हूँ कोई खेद नहीं करता
तो आप तो बुद्दिमान है, ज्ञानवान है,
उससे भी बढकर आप दोनों इंसान है
आज से सीख डालो,
अपने मन में प्रीत पालो
आप दोनों भाईचारे की शोभा है, आभा है
दोनों ही  धर्मा है, दोनों ही  कर्मा है
आप दोनों ही  गीता है, दोनों ही कुरान है
उससे भी बढकर आप दोनों इंसान है 
उससे भी बढकर आप दोनों इंसान है ...........




प्रभात कुमार भारद्वाज 

"मै अकेला नहीं हूँ"

वो पैसे के पीछे भागी
मै उसके पीछे भागा
मेरे अपने मेरे पीछे भागे
और अपनों के पीछे कुछ गैर
पर खुदा का खेल देखो
उसे पैसा मिल गया
गैरो को वो मिल गयी
मेरे अपनों को दुनिया मिल गयी
अकेला रह गया तो सिर्फ और सिर्फ मै
तभी मेरी तन्हाई मुझसे लिपट कर बोली
तू अकेला नहीं है पगले, मै तेरे साथ हू"
""वादा है कभी हाथ ना छोडूंगी
मरकर भी देख ले, साथ न छोडूंगी"

प्रभात कुमार भारद्वाज

कफ़न


बहुत शोर है दुनिया में इसे अमन कर दो,
उसके दुप्पटे को मेरा कफ़न कर दो,
वो कहती है अगले जनम में मिलेंगे .
दोस्तों , मुझे जिंदा ही  दफ़न कर दो .............

कौन लेगा जगह कफ़न बिछने के बाद,
कौन संभलेगा  सियासत मेरे बिकने के बाद,
माहौल था ग़मगीन सब सोच रहे थे,
दिया बोला मै जलूँगा सूरज ढलने के बाद.

तुम क्यों आँखे चार कर रहे हो,.
मुझे जिताकर मेरी हार कर रहे हो,
सफ़ेद धागे जो बुन रहे हो तुम, ये 
उसका दुप्पटा है या मेरा कफ़न तैयार कर रहे हो .........

मुझे गम जुदाई का नहीं तन्हाई का है
अपनों से मिली बेवफाई का है,
मै तो लुटा हू सरे आम बाजारों में,
पर मुझे गम उसकी तबाही का है

कफ़न के नाम पर जाली दे गए,
मेरी लाश बिछी तो ताली दे गए
और मजा तो तब आया हुजूर
जब मेरे नाम की जगह वो गाली दे गए,,,,,,,,,,,,,

प्रभात कुमार भारद्वाज "परवाना"







रविवार, 27 मार्च 2011

हिन्दू से पहले हिन्दुस्तानी


न भोगी हू न जोगी हूँ , मै निष्पाप कहानी हूँ 
मत कह तू मुझको हिन्दू प्यारे मै हिन्दू से पहले हिन्दुस्तानी हूँ
मै ज्ञान नहीं मै ध्यान नहीं, अरमान नहीं भगवान् नहीं,
मत देख तू मुझको ऐसे प्यारे मै मजदूर के माथे वाला पानी हूँ
मत कह तू मुझको हिन्दू प्यारे मै हिन्दू से पहले हिन्दुस्तानी हूँ
हे मनु तू कितना निर्दयी तुने ये क्या भेद बनाया है,
हिन्दू में क्या रखा, जो मुस्लिम ने ना पाया है,
क्यों कहता इंसा इंसा से तू हिन्दुस्तानी मै पाकिस्तानी हूँ
मत कह तू मुझको हिन्दू प्यारे मै हिन्दू से पहले हिन्दुस्तानी हूँ
खून बहा जाने कितनो का इस अनचाहे बटवारे से
आसमान जैसे बिछड़ा कोई अपने प्यारे  तारे से
न शर्मा हू न वर्मा हू, मै शास्वत रूप से कर्मा हूँ
खान ना कहना मुझको प्यारे मै खान नहीं खानदानी हूँ
मत कह तू मुझको हिन्दू प्यारे मै हिन्दू से पहले हिन्दुस्तानी हूँ.....
मत कह तू मुझको हिन्दू प्यारे मै हिन्दू से पहले हिन्दुस्तानी हूँ...........




प्रभात कुमार भारद्वाज



शनिवार, 26 मार्च 2011

जब प्यार पर लिखने बैठा..........


जब प्यार पर लिखने बैठा,
             उनका चेहरा नजर आया,
             जुल्फों का पहरा नजर आया,
             सपनो  में बंधता था हर पल मुझको
             मेरे सर पर सहरा नजर आया 
जब प्यार पर लिखने बैठा 
            दूर एक कश्ती नजर आई
            दीवानों की बस्ती नजर आई
            तिनके तोड़ती, रिश्ते जोड़ती
            वो बागो की मस्ती नजर आई
जब प्यार पर लिखने बैठा
            फूलो का तोडना याद आया
            यादो का जोड़ना याद आया
            थोड़ी देर और रुक जाओ कह के
            कलाई का मोड़ना याद आया
जब प्यार पर लिखने बैठा
          मुझे देख कर छुपना याद आया
          दिल का दुखना याद आया
          राहे तकते  तकते मंजिल पर
          घड़ी का रुकना याद आया 
जब प्यार पर लिखने बैठा .........................
जब प्यार पर लिखने बैठा ....................

प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"
                             



शुक्रवार, 25 मार्च 2011

"हम मिल ना सके ........."


वो चाँद मै सूरज हम मिल ना सके,
वो दरिया मै सागर हम मिल ना  सके
वो पश्चिम  मै पूरब हम मिल ना सके
वो पतझड़ मै सावन हम मिल ना सके
वो  बचपन  मै जवानी हम मिल ना सके,
मै सच वो कहानी हम मिल ना सके,
वो तेल मै पानी हम मिल ना सके
वो मृत्यु मै जीवन हम मिल ना सके,
वो रेत मै कश्ती हम मिल ना सके,
 वो अम्बर मै धरती हम मिल ना सके,
वो नगर मै बस्ती हम मिल ना सके
वो अँधेरा मै किरण हम मिल ना सके
"वो सीता मै हिरण हम मिल ना सके "


प्रभात कुमार भारद्वाज "परवाना"

गुरुवार, 24 मार्च 2011

दर्द भरे नगमे


दर्द भरा हो सीने में,
मजा न आये जीने में, 
चल साखी मैखाने में,
देख मजा फिर पीने में,

जुल्फों को हिला कर मुझे तक हिला देती है,
पास जाके कब्र के मुर्दों को जिला देती है,
मै नहीं पीता हुजूर शौक से  पैमाने को,
वो जालिम इतनी है की नजरो से पिला देती है 

हम घबरा रहे थे उनकी पायल की झंकार से,
वो दिल को मेरे चीर रही थी अपने नैनो की धार से,
यु तो दुनिया ने जोर लगाया जान हमारी लेने को,
पर उन्होंने हमको मार दिया जुल्फों की बौछार  से 

क्या बहार आएगी इस सूने चौबारे में,
क्या चमक आएगी इस बुझते हुए तारे में,
जब पुछा उन्होंने कुछ ऐसा तो बस ये निकला,
कभी पूछा  नहीं मैंने दिल से इस बारे में,

जब पूछा दुनिया ने उस रात कहा थे,
कैसे कह देता हम वह थे,
कुछ बोल न सके वो होठो से हाल-ए-मॉहौल देखिए
उनकी आँखों की शर्म वह थी और हम चुप यहाँ थे, 

प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"

जुदाई बनाम बेवफाई


जाग जाग कर करते होंगे वो नाटक अक्सर सोने का,
मन तो उनका होता होगा चुपके चुपके रोने का,
सिर्फ मै ही  नहीं रोता दीवारों से फूट फूट के,
दुःख उन्हें भी जरूर होता होगा मुझे खोने का.

मै जानता हू किन हालातो में पला था मै,
मै जानता हू कटे पैर, मीलो मील चला था मै,
जिस दिन देखी सरे आम उनकी बेवफाई 
उस दिन सूरज से तेज जला था मै.

प्यारे से जालिम की जुदाई ने मारा,
गैरो की भीड़ थी तन्हाई ने मारा,
कोई और जिम्मेदार नहीं मेरी मौत का,
कुछ उनकी अदाओं  ने, कुछ उनकी बेवफाई ने मारा.

छोटी सी दुनिया में बड़ा नगर बन चुका है,
आँखों में बसने वाला अब नजर बन चुका है,
मत दो खुशिया मर जाऊँगा मै शायद,
ये दर्द अब मेरा हमसफ़र बन चुका है.

उनके कोमल होठो पे अपना साज रखना चाहता हु,
अपने आप पे फक्र है मुझे, मै नाज रखना चाहता हू,
मत पूछो क्या नाम है मेरी मोहबत  का,
कुछ राज है मै उन्हें राज ही  रखना चाहता हू


प्रभात कुमार भारद्वाज "परवाना"

बुधवार, 23 मार्च 2011

दाग बिना चाँद


खुदा ने खुश हो कर ये बयाँ कर दिया , मांग ले तीन इच्छा जा तुझे वर दे दिया
मैंने कहा खुदा मैंने तेरी आज तक कभी उपेक्षा नहीं की, आज एक तेरे से एक अपेक्षा करना चाहता हू
मुझे बस एक चीज का सुरूर है, वो चाँद जिस पर तुझे गुरूर है, "क्या मुझे वो चाँद दे सकता है?"
खुदा बोला नहीं घुर्राया भी, मुहं लाल हुआ थर्राया भी,
तूने आज तक कुछ माँगा न सही, पर आज कुछ छोड़ा भी तो नहीं
मैंने कहा खुदा तेरे पास सूरज है तारे है, खुदा:"मैंने अपने एक चाँद पर ये सब वारे है "
खुदा"तेरे पहले वर में सब कुछ वसूल है , जा मुझे तेरी ये इच्छा कबूल है,
खुदा ने चाँद ले मेरी गोद में रख दिया "
नजर न लगे गैर की मैंने हाथो से ढक दिया,
देखता रहा कुछ देर तक, अश्क टपके जमीन पर,
हाय ये मेरा निष्ठुर भाग, चाँद मिला पर संग में दाग,
ए खुदा मेरी दूसरी इच्छा सुन ले, इस चाँद के सब दाग चुन ले ,
खुदा:"क्या कमाल करता है? चाँद के दाग पर मलाल करता है,
तेरी ये भारी भूल होगी, पर फिर भी तेरी ये इच्छा कबूल होगी ,
खुदा ने अँधेरे सभी छीन लिए, चाँद के दाग सब बीन लिए,
हाय चाँद क्याहुआ, अब इसमें वो रस ना रहा,
इसकी पीतलता कहा गयी, इसकी शीतलता कहा गयी,
ये क्या गलती मैंने कर डाली, चाँद पे अपनी नजरे डाली,
तीजा वर मुझको ये देदो , चाँद पराया वापस लेलो,
आज समझ में आया है, ये सब मोह और माया है,
केवल राज ये सच्चा होता है, दाग चाँद पर अच्छा होता है..............

प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"


रविवार, 20 मार्च 2011

आप चले गए?


कुछ कहते ही कहते खामोश हो गए वो,
होश में थे अब तक, बेहोश हो गए वो,
अब जिस्म ने शायद चलना बंद कर दिया,
दगाबाज दिल ने धड़कना बंद कर दिया,
रोते थे रूह तन से निकल निकल और निकल जल्दी,
अब रोती आँखों ने फड़कना बंद कर दिया,
एक तड़प थी , सब खुश रहे बाद मेरे,
अब उस रूह ने तड़पना बंद कर दिया,
आँखे जो भीगी, पलके जो सीली,
उन्हें हाथो ने मलना बंद कर दिया,
क्या तर्रकी की उन्होंने एक पल में,
उनकी  उम्र  ने ढलना बंद कर दिया,
कुछ गिरे अश्क गर्म  जमी पर मेरे,
और इस जमीन ने जलना बंद कर दिया ,
सिलसिला ए मातम शुरू हो गया क्या?
सरगम ए गम भी शुरू हो गया क्या?
कमजोर है दिल मेरा आसू न बहाओ
चिता का जलना शुरू हो गया क्या?
मै तो दूर खड़ा हू गंगा से लेकिन,
अस्थि विसर्जन शुरू हो गया क्या?
कई रिश्ते थे कई लोगो से उनके,
फिर से एक रिश्ता शुरू हो गया क्या?
साँसे खत्म थी, लिखी जो  खुदा ने,
फिर से एक जीवन शुरू हो गया क्या?


प्रभात कुमार भारद्वाज

कोई तो रंग दो


निकला था कुछ जल्दी लेकर,
निज हाथो में हल्दी लेकर,
सोचा मौज मनाऊंगा मै,
ले दे के खुशिया आऊंगा मै,
रास्ता कुछ जब पार लिया था,
कुछ लोगो का दीदार किया था,
आपस में सब गले मिले थे,
पर मन में सबके बैर पाले थे,
सुने सुने घर कुछ पाए,
हवे ने मद्धम गीत सुनाये,
हाय ये होले कहा गयी,
घर की रंगोली कहा गयी,
वो फूलो वाली मार खो गयी,
पिचकारी की धार खो गयी,
दुःख और दुःख ही  पाऊंगा क्या,
सूखा ही रह जाऊँगा क्या,
कही सत्य ये किस्सा हो ना,
मुझसे रंग लो, मुझको रंग दो ना,
दिल दुनिया का नर्म कहा जी,
लोगो को अब शर्म कहा जी,
वक़्त गया और क्रोध गया जब,
सूखा  ही घर लौट गया तब.


प्रभात कुमार भारद्वाज

शुक्रवार, 18 मार्च 2011

...और मै लिखता जाऊंगा


आज  बधाई देने दुनिया मेरे दर पे आई है,
पर भीड़ भरे मेरे घर में , जाने कैसी तन्हाई है,
मशहूर किया है तूने मुझको, सारी दुनिया ने जाना है,
अपना जिस जिस को समझा, पाया उसको बेगाना है,
गहरा रिश्ता होता है, कुछ मौतों का  गहराई से,
तेरे सितमो को लिख डाला है मैंने खूनी स्याही से,
गुस्से को मै पी जाता था, धोखा जब जब खाता था,
अश्क बहाता रहता  था ,पर मै लिखता जाता था,
दुनिया में बस मेरी चर्चा है, मेरे गम की बाते होती है,
ऊपर से तू खुश दिखती है, पर अंदर अंदर रोती है,
क्या तेरे अहसानों का मै, बदला भी दे पाऊंगा,
तू बस गम ही  गम देती जा, और मै लिखता जाऊँगा
तू बस गम ही  गम देती जा, और मै लिखता जाऊँगा.......

प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"
                       





गुरुवार, 17 मार्च 2011

मेरा बचपन लौटा दो


बीज जवानी बोया है, मेरा बचपन भी खोया है,
जब गुड्डे की शादी का बाराती सुबक सुबक कर  रोया है 
वो छोटा छोटा  खेल खिलौना , सूखे पत्ते पत्तो का दोना,
कैसे भूलू छोटी गुडिया का बार बार मै करता गोना.
वो बंदर जो ताली देता था, तोता जो गाली देता था,
खेल खेल में नोट पांच का जब मै जाली देता था.
वो नीम पेड़ पीपल की छाया, बचपन मैंने वही बिताया,
याद आज भी आता मुझको, झूले में जो चक्कर आया
कहा मेरी मुस्कान खो गयी, कहा मेरी पहचान खो गयी
बूढ़े  बाबा की टॉफी वाली जाने कहा दुकान खो गयी,
चंदा मामा के प्यारे किस्से, एक रोटी के बराह हिस्से
वो बूढी नानी के हाथो में जब मिलते थे जब दस्से बिस्से,
झुक झुक झुक झुक खेल रेल का, गुस्से वाला खेल मेल का,
मै आज भी ढूढ़  रहा हू, कैदी जो भागा  था जेल का,
खुदा ने लूटा मेरा बचपन शायद  कुछ ज्यादा जल्दी में,
आज शाम  को शादी मेरी लिपटा  बैठा हू हल्दी में.





प्रभात कुमार भारद्वाज 



बुधवार, 16 मार्च 2011

शब्द मेरे दर्द मेरा


नीयत बुरी हो तो अपराध पूरा होता है,
रंजिश हो पुराणी तो  अफ्साद पूरा होता है,
नहीं मोहताज कोई मृत किसी के अहसान का,
श्रद्दा हो मन से तभी श्राद पूरा होता है,

वो भूलते चले सीखने की चाह में,
वो हारते चले जीतने की चाह में,
जूनून था सर सवार मुझे पाने के इस कदर,
वो बिकते चले मुझे खरीदने की चाह में.

जलजला तेरी आँखों का मुझे बेनूर कर गया,
मेरी रूह को मेरे हुस्न से दूर कर गया,
आबाद रहे खुशिया तेरी मेरे बाद भी,
खुदा को ये कसम देके मजबूर कर गया.

आ गए फिर तन्हाइओ  की महफ़िल में गम-इ--जाम लेकर,
फिर वाही दर्द भरे किस्स्सो से भरी शाम लेकर,
नूर से है जिसके जहा रोशन हर कारवा रोशन,
चल फिर जमाये महफ़िल उसका नाम लेकर.

वो दूर क्या हुए खुद को गुमशुदा कह बैठा,
हर खुशी हर गम से खुद को जुदा कह बैठा,
इनके अंदाज ही  कुछ ऐसे थे क्या बया करू,
खुदा खुद उन्हें अपने खुदा कह बैठा.

खुदा कसम मै मरने जा रहा हु
. खुदा  कसम कुछ करने जा रहा हू
उची सही तेरे प्यार की सीढ़ी मगर
लगड़ा हू तो क्या हुआ, चढ़ने  जा रहा हू 

प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"




मंगलवार, 15 मार्च 2011

प्रभात क्या है ?


धुए को धुम्रपान  कराते है देखिए,
गंगा जी को स्नान कराते है देखिए,
यहाँ तक भी ठीक था मजाल जो करी,
"प्रभात" को अंधेरो से डराते  है देखिए 


धुए धुए सा है "प्रभात" आज क्यों ?
दिल में उसके मचा  है उत्पात आज क्यों?
फिजा के झरोखे से चाहा जिन्दगी में फिर आएगी बहार  शायद 
पर बेफवा सा लगता है उसका प्यार आज क्यों?


जलते जलते परवाना ये सोचता होगा,
अपने पागल दिल को यु कचोटता होगा,
जख्म की आदत हो और फिर जख्म न मिले,
वो फिर पुराने जख्म को कुरेदता होगा 


मेरे बहुत दुश्मन है, दोस्तों संभल के चलो,
वो जो  सफ़ेद चुन्नी ले के चल रही है कफ़न तैयार है मेरा,

मै वो दरिया नहीं  जो तेरा पत्थर खा जाऊ प्यार से,
मै वो छीटा  हू जो उछल  के मुह  पे लगता है..

"अक्सर  लोग  मुझसे  यही  सवाल  करते है ,
मेरी हर ख़ुशी पर मलाल करते है,
कहा से मिला रोशनी का पता 
प्रभात से पूछते है , आप भी कमाल करते है. आप भी कमाल करते है."

प्रभात  कुमार भारद्वाज"परवाना"









सोमवार, 14 मार्च 2011

आखिरी एहसान .....


मेरे टूटे दिल पे मत मलो मलहम
ये जख्म उसकी याद को पंनाह दे रहे है,
बहुत जी लिए हम खुदा इस जहान में,
वापस तुझको ये तेरा मकां दे रहे है.
जला चुके जो कइयो के दिल को वो जालिम
उनके ही  हाथो शमा दे रहे है.
उधार थी कुछ डोर-इ-जिन्दगी तुम पर,
अमानत तुमको तुम्हारी थमा दे रहे है.
महल जो टूटे थे कुछ रेत वाले,
लो फिर से बना  कर मिटा दे रहे है.
दे न सके जिन्दगी में खुशी जो,
मरने पे मुझको चिता दे रहे है 


प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"




दिया बोला चाँद से


एक दिया चाँद से बोला: तुझमे तो दाग है,
चाँद बोला तू कौन सा बेदाग़ है,
दिया बोला तू कुछ ख़ास नहीं पर्वत का डेला है,
चाँद बोला: अपने नीचे देख दीपक तले अन्धेरा है,
दिया गुस्से में घुर्राया: मेरा नूर जहान रोशन कर रहा है,
चाँद बोला: हर परवाना तेरे आगोश में जल रहा है,
दिया: ये तो मेरे परवाने है क्या कहू.
चाँद: मेरे भी दीवाने है क्या कहू.
दिया बोला मै एक हू कई जला सकता हू
चाँद बोला: मै समुद्र का पानी उठा सकता हु.
दिया: दिवाली का मै राजा हू, तू गुमनाम होता है,
चाँद बोला:शरद पूर्णिमा पे बस मेरा काम होता है.
दिया बोला चल भुला के गिले, फिर आ मिले,
चाँद: हट  तेरी मेरी दोस्ती तू क्या भांग पिए है.
दिया:तू घमंडी है इसीलिए खुदा ने  तुझे दाग दिए है.... 

प्रभात कुमार भारद्वाज "परवाना"




रविवार, 13 मार्च 2011

दर्द ए दिल का तोहफा तेरा


दर्द ए दिल का तोहफा तेरा कबूल करता हू  आराम से 
उसके सितमो का ब्योरा दू अब तो डर सा लगता है उसके नाम से,

होश जो जो है खो जाए वो सभी,
हमें भी रू-ब-रू करो, किसी ऐसे जाम से

जब से वो दिल को तोड़ गए, हालत-ए-गम बस छोड़ गए,
बस पी रहा रहा हू मै, उसी ही  शाम से

मै तेरा क्या दुःख लेता, मै तुझको कितना सुख देता,
कुछ भी ना दे सका तुझे, सिवाय अपनी जान के.

गैरो की क्या बात करू, अपनों ने दिल को रौदा है,
अब तो नफरत सी हो गयी है अपनों के नाम से.

प्रभात कुमार भारद्वाज "परवाना"




मेरा दर्द तुम न समझ सके

उनको मनाने हम जहा  जहा निकले,
वक़्त के काफिले  तक हमसे खफा निकले,
हुस्न और धोखा संग देता है क्या खुदा?
जिस जिस पे दिल आया सब बेफवा निकले.


रोशन  थे जो चिराग  बेनूर होते चले,
हम हारे थे जिंदगी से मजबूर होते चले,
जाने किस बात पे इतना अहम् था उन्हें,
जितना हम पास गए उतना वो दूर होते चले,


कारवा मेरे हमदर्दों का छटता रहा 
हर पल बेनूर सा कटता रहा,
वक़्त की की नजाकत देखी गौर से जनाब,
वो पतंग सी उडती रही मै डोर सा कटता रहा 


मेरे लिखे पन्ने मुझे ख़ाक में ले गए,
तन्हाएओ से भरी रात में ले गए,
उनसे दूर होकर मर गया मै,
पर कुछ दोस्त मेरा जनाजा उनकी बरात में ले गए


अक्सर कुछ तारे कमाल करते है,
गरीबो की दुनिया मालामाल करते है,
मेरे सारे जवाब में नाम उनका है वो जानते है,
फिर भी क्यों वो मुझसे सवाल करते है,


एक कसम भी प्यार की खा न सके,
कुछ लब्ज जुबान पे आ न सके,
बहता पानी , उचा पुल ठंडी हवा,
हम इन्तजार करते रहे,
और वो आ न सके,


कुछ अदा पुरानी थी, कुछ अंदाज पुराने थे,
कुछ जख्म पुराने थे, कुछ राज पुराने थे,
हम वफ़ा वफ़ा और वफ़ा करते रहे, भूल गए,
वो दगाबाज़ पुराने थे ...






प्रभात कुमार भारद्वाज 
9555133845

चाँद को चांदनी दे दो


चाँद  तुम्हे देखकर शर्माता तो होगा,
तुम्हारे हुस्न से जलन खाता  तो होगा,
निकलते होगे जब आप रात  में कभी कभी,
आपकी चांदनी में वो नहाता तो होगा,

फिर खुदा से सवाल करता तो होगा,
कुछ गुस्सा कुछ बवाल करता तो होगा,
जलकर आपके हुस्न से चाँद भी कभी कभी,
अपनी किस्मत पे मलाल करता तो होगा 

फिर एक नयी जफा हो जाएगी आपसे,
किसी गैर पर फिर वफ़ा हो जाएगी आपसे,
इस रात को घर से न निकल जालिम,
चांदनी फिर खफा हो जाएगी आपसे 

खुदा ने चाँद बनाया तो होगा,
आसमा तारो से सजाया तो होगा, 
क्यों नूर भी बेनूर लगता है आपके सामने,
ये राज आपको बताया तो होगा 

मौत से भीख मांग आऊंगा मै,
हर हद से गुजर जाऊंगा मै,
जन्नत की हर खुशी उसपे कुर्बान,
अपने  चाँद की मांग तारो से सजाऊंगा मै,

 तेरी इच्छा उसे पाने की होती तो होगी,
उसकी खातिर मरजाने की होती तो होगी,
ग्रहण जैसा कुछ नहीं  होता हुजूर,
वो उस रात  मुह ओढ़ के सोती होगी,

चाँद को चांदनी पे गुरूर दिखा आज 
परवाना तक शम्मा से दूर दिखा आज
हुकूमत ही  कुछ ऐसी है मेरे चाँद की जहाँ पे,
नूर ए खुदा भी बेनूर दिखा आज 

जबान मेरी कुछ कुछ कहती है संभालो 
सितारों की दुनिया मांग  में रहती है संभालो 
चाँद आप खुद हो और क्या कहू,
चांदनी दुप्पटे से बहती है संभालो

प्रभात कुमार भारद्वाज "परवाना"




कहा गयी?


मेरे घर की रौनक कहा गयी, मेरे घर की खुशिया कहा गयी,
वो पायल की छम छम कहा गयी, चेहरे की चमचम कहा गयी,
वो नह्न्ही ऊँगली कोमल आँखे, वो छोटी बाते लम्बी बाते, बातो पे बाते,
वो नोकझोक वो खीचातानी, गुड्डे गुडिया खेल कहानी,
वो उलटे सीधे तर्क लगाना, गोलगप्पे  की शर्त लगाना,
दिन जाने कैसे जल्दी बीते, वो शहनाई वो हल्दी टीके,
वो नन्ह्नी  गुडिया कहा गयी, वो छोटी ऊँगली कहा गयी,
ओढ़ चुनरिया गोटे वाली, वो हर पल में मुस्काने वाली,
वो चुप थी पर आसू बोले, ह्रदय भेद बूंदों ने खोले,
तन चाहे मेरा जहा रहेगा, पर मन तो मेरा यहाँ रहेगा,
बेटी घर से विदा हो गई, खुशिया घर से जुदा हो गई,
वो चंचलता, मुस्कान खो गई, दीवारे बेजान हो गई, 
प्रश्न पूछते चाबी ताले, घड़ियो के नीचे लटके जाले,
वो कमरा गुस्से में घुर्राया, छोड़ कहा पे उसको आया,
जवाब इन्हें मै कैसे लाता,अमानत मै कब तक रख पाता,
टिक टिक टिक टिक बाट निहारु, बार बार यही प्रश्न पुकारू 
मेरे घर की रौनक कहा गई, मेरे घर की  खुशिया कहा गयी 


 प्रभात कुमार भारद्वाज 
9555133845

मेरे बाद

खुदा खुद की लिखी पे रोये, मेरा जनाजा कुछ इस तरह उठाना दोस्त
बस सुमन हो श्रदा के, गोटा हो प्रीत का, मेरा जनाजा कुछ इस तरह सजाना दोस्त
मेरे  दरस को तरस जाए दुश्मन सभी मेरे, मेरा कफ़न कुछ इस तरह उड़ाना दोस्त,
हवा भवर, बरखा सब तान पड़े फीकी, मृत संगीत कुछ इस तरह बजाना दोस्त,
कण कण मिले गंगा में हुस्न का, मेरी राख कुछ इस तरह बहाना दोस्त,
बस यार यार था वो यारो का, मेरा परिचय कुछ इस तरह कराना दोस्त 
मै रहू सबकी आँख में खुशी का अश्रु बन के, मेरे बाद जहाँ को इस तरह हसाना दोस्त!!!!!!!!! 

 प्रभात कुमार भारद्वाज "परवाना"




सोमवार, 7 मार्च 2011

मेरा दिल तो तेरे चाँद के पास है.

मैंने खुदा से कहा तुने चाँद क्यों बनाया?
खुदा बोला ताकि जमीं के हर चाँद को पता चले की चाँद में दाग है,
मैंने कहा की मेरे चाँद पर दाग कहा?
खुदा बोला तू खुद अपने चाँद पर दाग है,
मैंने कहा अपने दिल से पूछ ए खुदा,
खुदा बोला :"मेरा दिल तो तेरे चाँद  के पास है.
किस कदर गिर गया खुदा मेरे चाँद के वास्ते,
अब कौन कहेगा खुदा बेदाग़ है?
अब कौन कहेगा खुदा बेदाग़ है?
 
प्रभात कुमार भारद्वाज "परवाना"