गुरुवार, 17 मार्च 2011

मेरा बचपन लौटा दो


बीज जवानी बोया है, मेरा बचपन भी खोया है,
जब गुड्डे की शादी का बाराती सुबक सुबक कर  रोया है 
वो छोटा छोटा  खेल खिलौना , सूखे पत्ते पत्तो का दोना,
कैसे भूलू छोटी गुडिया का बार बार मै करता गोना.
वो बंदर जो ताली देता था, तोता जो गाली देता था,
खेल खेल में नोट पांच का जब मै जाली देता था.
वो नीम पेड़ पीपल की छाया, बचपन मैंने वही बिताया,
याद आज भी आता मुझको, झूले में जो चक्कर आया
कहा मेरी मुस्कान खो गयी, कहा मेरी पहचान खो गयी
बूढ़े  बाबा की टॉफी वाली जाने कहा दुकान खो गयी,
चंदा मामा के प्यारे किस्से, एक रोटी के बराह हिस्से
वो बूढी नानी के हाथो में जब मिलते थे जब दस्से बिस्से,
झुक झुक झुक झुक खेल रेल का, गुस्से वाला खेल मेल का,
मै आज भी ढूढ़  रहा हू, कैदी जो भागा  था जेल का,
खुदा ने लूटा मेरा बचपन शायद  कुछ ज्यादा जल्दी में,
आज शाम  को शादी मेरी लिपटा  बैठा हू हल्दी में.





प्रभात कुमार भारद्वाज 



2 टिप्‍पणियां:

chetan ने कहा…

fan bhai fan.
Mast n awesome.
Mujhe msg kr diyo.
I'll promote it also.

HEM@NT G@RG ने कहा…

awesome poetry bhai..................