जाग जाग कर करते होंगे वो नाटक अक्सर सोने का,
मन तो उनका होता होगा चुपके चुपके रोने का,
सिर्फ मै ही नहीं रोता दीवारों से फूट फूट के,
दुःख उन्हें भी जरूर होता होगा मुझे खोने का.
मै जानता हू किन हालातो में पला था मै,
मै जानता हू कटे पैर, मीलो मील चला था मै,
जिस दिन देखी सरे आम उनकी बेवफाई
उस दिन सूरज से तेज जला था मै.
प्यारे से जालिम की जुदाई ने मारा,
गैरो की भीड़ थी तन्हाई ने मारा,
कोई और जिम्मेदार नहीं मेरी मौत का,
कुछ उनकी अदाओं ने, कुछ उनकी बेवफाई ने मारा.
छोटी सी दुनिया में बड़ा नगर बन चुका है,
आँखों में बसने वाला अब नजर बन चुका है,
मत दो खुशिया मर जाऊँगा मै शायद,
ये दर्द अब मेरा हमसफ़र बन चुका है.
उनके कोमल होठो पे अपना साज रखना चाहता हु,
अपने आप पे फक्र है मुझे, मै नाज रखना चाहता हू,
मत पूछो क्या नाम है मेरी मोहबत का,
कुछ राज है मै उन्हें राज ही रखना चाहता हू
प्रभात कुमार भारद्वाज "परवाना"
3 टिप्पणियां:
waah prabhat bhai ekdum dil ki baat keh di.....
ultimate bhai....kuchh raaj hai main unhe raaj hi rakhna chahta hun.....mast ....sandar....aur kya kahu...
hale dilo ki dasta yun bayan kar di tune
ekbargi labjo pe najar thahar sa gya
in kagaj ki purjo aur kalam ki takat dekh li aaj humne
sari dhadkane jo kahi kaid thi ...
aaj asko ke sang wo bhi bahakne lga.....
bahut acchi h boss thats great
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