सोमवार, 28 मार्च 2011

कफ़न


बहुत शोर है दुनिया में इसे अमन कर दो,
उसके दुप्पटे को मेरा कफ़न कर दो,
वो कहती है अगले जनम में मिलेंगे .
दोस्तों , मुझे जिंदा ही  दफ़न कर दो .............

कौन लेगा जगह कफ़न बिछने के बाद,
कौन संभलेगा  सियासत मेरे बिकने के बाद,
माहौल था ग़मगीन सब सोच रहे थे,
दिया बोला मै जलूँगा सूरज ढलने के बाद.

तुम क्यों आँखे चार कर रहे हो,.
मुझे जिताकर मेरी हार कर रहे हो,
सफ़ेद धागे जो बुन रहे हो तुम, ये 
उसका दुप्पटा है या मेरा कफ़न तैयार कर रहे हो .........

मुझे गम जुदाई का नहीं तन्हाई का है
अपनों से मिली बेवफाई का है,
मै तो लुटा हू सरे आम बाजारों में,
पर मुझे गम उसकी तबाही का है

कफ़न के नाम पर जाली दे गए,
मेरी लाश बिछी तो ताली दे गए
और मजा तो तब आया हुजूर
जब मेरे नाम की जगह वो गाली दे गए,,,,,,,,,,,,,

प्रभात कुमार भारद्वाज "परवाना"







2 टिप्‍पणियां:

Rahul Yadav ने कहा…

LOve Love Love___ accha likha hai bhai

mere jeevan ki kashti... ने कहा…

BAHUT GEHRI BAAT LIKHI HAI PRABHAT BHAI....
बहुत शोर है दुनिया में इसे अमन कर दो,
उसके दुप्पटे को मेरा कफ़न कर दो,
वो कहती है अगले जनम में मिलेंगे .
दोस्तों , मुझे जिंदा ही दफ़न कर दो .............