सोमवार, 14 मार्च 2011

आखिरी एहसान .....


मेरे टूटे दिल पे मत मलो मलहम
ये जख्म उसकी याद को पंनाह दे रहे है,
बहुत जी लिए हम खुदा इस जहान में,
वापस तुझको ये तेरा मकां दे रहे है.
जला चुके जो कइयो के दिल को वो जालिम
उनके ही  हाथो शमा दे रहे है.
उधार थी कुछ डोर-इ-जिन्दगी तुम पर,
अमानत तुमको तुम्हारी थमा दे रहे है.
महल जो टूटे थे कुछ रेत वाले,
लो फिर से बना  कर मिटा दे रहे है.
दे न सके जिन्दगी में खुशी जो,
मरने पे मुझको चिता दे रहे है 


प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"




2 टिप्‍पणियां:

Dr. kavita 'kiran' (poetess) ने कहा…

Prabhat aap kya nirashawad ke kavi hain???plz be optimistic in life..be posotive..aur bhi gamm hain zamane mein muhabbat ke siwa..:)

om ने कहा…

kabhi bhke the jo kadam humare muhabat ki majlish me
aaj labjo se ye paigam de rhe hain

bhut kaante hain isque ki raah me
ye lo hum tumhe dard ka aaiyna dikha rhe hain.....

actually it reflet the truth of disaster which emerges after break up in love.....